Mangalwani

अस्तित्व कि महिमा : पूज्य बहेनश्री
मै एक अस्तित्व प्रधान वस्तू हु. ऐसे, मेरा अस्तित्व चैतन्य स्वरूप से है और जड स्वरूप से मेरा अस्तित्व नही है. ऐसे पहले ग्रहण हो के मेरा अस्तित्व है. पश्चात (अस्तित्व है तो) वह पदार्थ कैसा है? तो कहते है कि (वह) ज्ञान-आनंद आदि अनंत गुणो से परिपूर्ण है. ज्ञान-आनंद से भरपूर मेरा अस्तित्व है. अनंतकाळ बिता, अनंत जन्म-मरण किये – किंतु ज्ञायक का अस्तित्व ज्ञायक रूप से हि कायम रहा है. वह नर्क-निगोद मे – के अन्य कोई क्षेत्र मे रहा, कितने ही उपसर्ग-परीषह आये फिर भी चेतन का अस्तित्व चेतन रूप से ही रहा है और उसका नाश होता नही है. ज्ञायक का ज्ञायक-रूप अस्तित्व कभी छुटा है नही, कभी नाश होता नही है – याह उसका भाव है. ऐसे अस्तित्व कि महिमा है और उसका ग्रहण होनेसे द्रव्य-गुण-पर्याय इन सब का ज्ञान एक साथ हो जाता है.

— प्रशममूर्ती पूज्य बहेनश्री, स्वानुभूति दर्शन