Mangalwani

प्रथम पर्याय का लक्ष्य छुडवाकर, पश्चात गुण-गुणी के भेद का लक्ष्य छुड्वाया है. क्रम से समजाने के अलावा अन्य किस रीति से समजाये ? इसी लिये कहते है की पर्याय को अंतर्मुख कर, और साथ में जो गुण-गुणी के भेद है, उनको तिरोधान कर दे, अद्रश्य कर दे, ढक दे – ऐसा कहा जाता है. वस्तु जो द्रव्य है, याने की चेतन ऐसा द्रव्य और चैतन्य ऐसे गुण-ऐसे भेदको ढककर एक अभेदको लक्ष्य में ले. यह तो तिन लोक के नाथकी दिव्य वाणी है. अनंत काल में जो नहीं किया उसे करने के लिये यह है.

— परमागमसार में उधृत रत्न१३२, पथ प्रकाशक”(हिंदी संस्करण)