Mangalwani

हे भव्य ! तू शरीरको ना देख! रागको न देख! एक समयकी पर्याय को न देख ! तुम्हारे पास तुम्हारा पूर्णानंद प्रभु बिराजमान है – उसको देख! अरे भगवान! तू पूर्णानंद स्वरुप समीप ही हो – वह कैसे दूर रह सके ? ऐसी दिगंबर संतो की वाणी झंझावत की तरह – प्रकाशित करती आ रही है की तुम्हारे समीप ही पूर्णानंद प्रभु मौजूद है, उसको तुम आज ही द्रष्टि में ले ! आजही स्वीकार कर और हा कर दे ! हा करते वैसी ही हालत हो जाएगी – ऐसा तू पूर्णानंद का नाथ हो !

— पूज्य गुरुदेवश्री, वचनामृत ६: द्रष्टिना निधान (गुजराती) – श्री परमात्मा प्रकाश गाथा ४३, ६५,६८ पर प्रवचन.