मेरा आयुष्य दीर्घ है, हाथ-पग आदि अवयव अति मजबूत है और लक्ष्मी भी मेरे आधीन है – फिर मुझे यह व्यर्थ आकुलता किस लिए? भविष्यमें जब में वृद्धावस्ता को प्राप्त होऊंगा – तब में निश्चिन्त होकर खूब धर्मं आराधना करूँगा. खेद कि बात है कि ऐसा विचार करते करतेम यह मुर्ख प्राणी काल को ग्रसित हो जाता है !
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