दर्पण में जब प्रतिबिम्ब पड़े उसी काल उसकी निर्मलता होती है, वैसे ही विभावपरिणामके समय ही तुजमे निर्मलता भरी है. तेरी द्रष्टि चैतन्यकी निर्मलता को ना देखकर विभवे में तन्मय हो जाती है – वह तन्मयता छोड़ दे !